यदुवंश का रहस्य - कहां गए यदुवंशी?
हिंदुओं के धर्म का एक ऐसा महाकाव्य है जो कईं तथ्यों और बातों पर एक इंसान को सोचने पर मजबूर करता है कि सही क्या है और गलत क्या है।
महाभारत का युद्ध जहन में आते ही याद आती है उस वक्त बही खून की नदियों की।
महाभारत के युद्ध के दौरान इतना खून बहाया गया कि कुरुक्षेत्र की धरती भी लाल हो गई ।यह एक ऐसा युद्ध था जिसके प्रभाव से मानव तो क्या स्वयं भगवान भी अछूते ना रह पाए।
महाभारत के युद्ध के बाद माता गांधारी ने श्रीकृष्ण को दुखी होकर श्राप दिया कि जिस प्रकार आज मेरे कुल का अंत हुआ है इसी प्रकार तुम्हारे कुल का भी अंत होगा और तुम्हारा नाम लेने वाला इस धरती पर कोई नहीं बचेगा।
यदुवंशी कौन हैं?
तो दोस्तों आज के समय में जो यदुवंशी अपने नाम के आगे यादव लगाते हैं वह कौन हैं ?क्या वह श्री कृष्ण के वंशज हैं? या कोई और? अगर गांधारी के श्राप की वजह से श्री कृष्ण का समूल वंश ही नष्ट हो गया था तो फिर यह यादव कहां से आए? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आज हम एक कथा के जरिए जानने की कोशिश करेंगे। तो चलिए आज हम आपको यह कहानी सुनाते हैं।
यादव जिन्हें यदु के वंशज यानी कि यदुवंशी भी कहा जाता है इन्हें स्पार्टन ऑफ इंडिया भी बोला जाता है यादव मुख्यतः भारत और नेपाल में रहते हैं।यादव एक समुदाय है जो चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा यदु के वंशज हैं।
माता गांधारी का श्राप
इस कहानी को सुनने के लिए आप सबको चलना होगा महाभारत के काल में ।
एक बार ऐसा सोच कर देखिए कि आप सब लोग उस वक्त में पहुंच चुके हैं जब महाभारत हुई थी। यह वह वक्त था जब कलयुग आने वाला था।सारे कौरव एक-एक करके काल के गर्त में समा चुके थे।
कहते हैं दुर्योधन सबसे छिपकर बैठ गया था। उसे बाहर निकालने के लिए भीम ने दुर्योधन को ललकारा। तब माता गांधारी ने दुर्योधन को अपने सामने बिना कपड़ों के आने के लिए कहा।
माता गांधारी ने अपने नेत्रहीन पति के साथ जीवन यापन करने के लिए एक पतिव्रता स्त्री का धर्म निभाते हुए आंखों पर पट्टी बांध ली थी। इतने वर्षों के पतिव्रता धर्म और उनकी तपस्या की वजह से माता गांधारी के अंदर बहुत शक्ति आ चुकी थी। जिसे वह दुर्योधन को देना चाहती थी।
अगर दुर्योधन उनके सामने बिना वस्त्र के खड़ा हो जाता और माता गांधारी की दृष्टि उस पर पड़ती तो दुर्योधन का पूरा शरीर उसी वक्त पत्थर का बन जाता और भीम को वह आराम से मार सकता था।
अपनी माता से मिलने के लिए दुर्योधन उनके पास जा रहे थे। तभी श्रीकृष्ण की दृष्टि उन पर पड़ती है और उनके पास आकर कहते हैं हे दुर्योधन तुम व्यस्क हो और इस रूप में अपनी माता के सामने प्रथम बार जाओगे तुम्हें लज्जा नहीं आएगी?
दुर्योधन थोड़ा सोच में पड़ जाता है।तभी वह एक पेड़ का पत्ता तोड़ कर अपनी जांघ पर लपेट लेता है
दुर्योधन माता के सामने खड़ा था माता जैसे ही पट्टी हटाती हैं ।जिस जगह उनकी दृष्टि पड़ी थी दुर्योधन का शरीर पत्थर का बन गया था।लेकिन उसकी जांघ का हिस्सा बच गया था।
यह देखकर माता गांधारी व्यथित हो गई थी। उन्होंने दुर्योधन से पूछा तो उसने बताया श्री कृष्ण के कहने पर उसने इस हिस्से को ढका है ।माता गांधारी को समझ में आ गया था कि श्री कृष्ण ने कोई लीला रची है और वह बहुत ज्यादा दुखी हो गई थी। इस लीला के फल स्वरुप मल्ल युद्ध में भीम ने दुर्योधन की जांघ को तोड़ कर उसका वध किया। क्योंकि सिर्फ एक वही हिस्सा था जो पत्थर का नहीं बना था।
माता गांधारी ने जब यह देखा कि उनके बाकी पुत्रों के साथ-साथ दुर्योधन भी अब जीवित नहीं है। तो वह बहुत ज्यादा दुखी हो गई और उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दिया,
हे कृष्ण किस प्रकार मेरे समस्त कुल का और वंश का नाश हुआ है मेरी पीढ़ी को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं बचा। उसी प्रकार मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम्हारे कुल को आगे बढ़ाने वाला भी कोई जीवित नहीं रहेगा
श्री कृष्ण के कुल के विनाश में सिर्फ एक ही श्राप नहीं बल्कि एक से अधिक श्रापों ने अपनी भूमिका निभाई एक और श्राप था जो इनके कुल के विनाश का कारण बना।
साम की कथा
श्री कृष्ण वहां से वापस लौट चुके थे। वहां से आकर उन्होंने जामवंत की पुत्री जामवंती से विवाह किया और जामवंती ने दिया जन्म एक पुत्र को जिसका नाम था साम।
लेकिन साम श्री कृष्ण के बिल्कुल विपरीत था ।सबसे बड़ी बात उसे श्री कृष्ण और राधा रानी का संबंध एक आंख नहीं भाता था। वह किसी भी अच्छे आचरण का अनुसरण नहीं करता था। स्त्रियों का सम्मान ना करना बड़ों की बात ना मानना किसी भी धर्म के रास्ते पर ना चलना साम की आदतों में शुमार था। श्री कृष्ण उससे बहुत ज्यादा व्यथित रहते थे। कहीं ना कहीं उन्हें आभास था कि उनके कुल का नाश करने वाला अंश प्रकट हो चुका है।
जहां श्री कृष्ण सबको सत्य और अच्छाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते।साम हमेशा गलत रास्ते को चुनता मांस मदिरा का सेवन करता। किसी भी गुरु या अपने से बड़े का आदर कभी नहीं करता। एक बार द्वारिका में कई साधु और सन्यासी पधारे। श्री कृष्ण ने उनका बहुत अच्छे से सादर सत्कार किया
ऋषि दुर्वासा का श्राप
उन सभी के साथ ऋषि दुर्वासा भी श्रीकृष्ण से भेंट करने के लिए आए थे। दुर्वासा ऋषि अपने गुस्से के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। साम को यह अवसर बहुत उचित लग रहा था उसने अपने मित्रों के साथ मिलकर एक योजना बनाई ।साम ने स्त्री का भेष धरा और अपने पेट को थोड़ा बड़ा कर लिया वह खुद को एक गर्भवती स्त्री की तरह दिखाना चाहता था और अपना चेहरा ढक कर मित्रों के साथ वह ऋषि दुर्वासा के पास पहुंच गया। वह ठिठोली करते हुए ऋषि दुर्वासा को देखकर बोला
हे महामुनी मैं गर्भ से हूं ।आप तो त्रिकालदर्शी हैं कृपा करके मुझे बताइए कि मुझे पुत्र होगा या पुत्री। उसकी बात सुनकर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए थे क्योंकि वह जान गए थे कि इस घूंघट के पीछे कोई भी स्त्री नहीं है अपितु पुरुष है।
किंतु उन्होंने साम को बच्चा समझकर कुछ नहीं कहा। लेकिन साम तो कुछ और ही सोच कर आया था ।उसने अपनी हंसी ठिठोली जारी रखी और अब वह अभद्रता पर भी उतर आया था।
वह जानबूझकर उन्हें कक्रोध दिला रहा था। तभी ऋषि दुर्वासा क्रोधित होते हुए कहते हैं ,
मूर्ख तुमने स्त्री जाति का अपमान किया है जिस मातृत्व को दुनिया में सबसे ऊपर स्थान दिया जाता है तुमने उसका उपहास उड़ाया है। मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हारे गर्भ से सच में एक मूसल का जन्म होगा। तब तुम्हें पता चलेगा कि किसी को जन्म देना क्या होता है आज से 7 दिन बाद तेरे गर्भ से एक मूसल प्रकट होगी और यह मूसल तेरे और तेरे संपूर्ण वंश के विनाश का कारण बनेगी।
इन सब चीजों से साम बुरी तरह से घबरा गया और वह अपने मित्रों के साथ राजा उग्रसेन के पास पहुंचा। राजा उग्रसेन और उनके साथी यह सब बात सुनकर थोड़ा चौंक गए।7 दिन बाद साम के गर्भ से एक मूसल उत्पन्न हुई जिसे पीसकर उन्होंने चुरा बना दिया उस चूरे को उन्होंने इकट्ठा करके एक समुद्र में फेंक दिया।उस चूरे के साथ लोहे का टुकड़ा भी था।
उस लोहे के टुकड़े को एक मछली ने निगल लिया और चुरा समुद्र की लहरों के साथ बैठकर किनारे की तरफ चला गया। उस चूरे की वजह से एक अलग ही और विचित्र तरह की घास उत्पन्न हुई।
उधर उस मछली को मछुआरों ने पकड़ लिया जब उसका पेट काटा तो उसमें से लोहे का टुकड़ा निकला जिसे जरा नामक भील ने अपने तीर की नोक पर लगाया।
मूसल युद्ध
भगवान श्री कृष्ण को भी मूसल वाले श्राप के बारे में पता चल चुका था लेकिन उन्हें इस श्राप को पलटने में कोई रुचि नहीं थी। वह अपने सेना नायकों को देखकर बोले,
ऋषि का श्राप अवश्य ही पूरा होगा। अपने कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। इसे कोई नहीं बदल सकता ।
तभी उन्होंने अपने प्रजा जनों को तीर्थ यात्रा पर चलने का आदेश दिया। उनके साथ सारे पुरुष तीर्थ यात्रा पर चल पड़े।
इसी यात्रा पर यह सभी आपस में लड़ पड़े ।इस युद्ध को मूसल युद्ध कहा जाता है ।इस युद्ध के पीछे भी एक बहुत बड़ा रहस्य छिपा था ।
इस युद्ध की शुरुआत हुई कृतवर्मा के अपमान से कृतवर्मा भगवान श्री कृष्ण की सेना के सेनानायक थे जिन्होंने दुर्योधन की तरफ से युद्ध लड़ा था ।वह 18 योद्धाओं में से एक थे जो जीवित बचे थे। वह बड़े ही पराक्रमी भी थे।
शाक्यकी ने मदिरा के आवेश में आकर उनका अपमान किया और कहा,
जो रात में मरे हुए इंसान की तरह सोए हुए आदमी को मार दे उसे क्षत्रिय कहलाने का कोई अधिकार नहीं
प्रद्युम्न न ने भी उनकी बात सुनकर कृतवर्मा का अपमान किया। कृतवर्मा यदुवंशी थे वह भोजराज हृदक के पुत्र थे।
शाक्यकी की बात सुनकर उन्हें क्रोध आ गया था। तभी वह अपना एक हाथ उठाकर तिरस्कार से बोलते हैं ,
धौवीशर्मा कि बांह कट गई थी।
वो मृत्यु होने तक उपवास का निर्णय लेकर वहीं पर बैठ गए थे ।लेकिन तुमने तब भी उनका वध कर दिया। यह तो वीरों वाले काम नहीं हैं ।नपुंसक वाले काम हैं ।शाक्यकी को यह सुनकर इतना क्रोध आया कि उसने उसी वक्त कृतवर्मा के गले को काट दिया और यह बात इतनी बढ़ी कि धीरे-धीरे इसने एक भयानक युद्ध का रूप ले लिया।
कहते हैं वहां पर उगी हुई घास को उन लोगों ने तोड़ तोड़ कर एक दूसरे के ऊपर प्रहार करना शुरू किया ।जैसे ही वह घास उनके हाथ में आती एक बड़े भयानक मूसल में बदल जाती और उसी मूसल से उन सब ने एक दूसरे को मार दिया। श्रीकृष्ण ने देखा कि उनके सारे यदुवंशी मरे पड़े हैं।
जिसमें साम, प्रद्युम्न और उनके बाकी पुत्र भी थे। सिर्फ श्री कृष्ण, बलराम जी और उनका एक विश्वासपात्र सैनिक बचा था। श्री कृष्ण अपने विश्वासपात्र को देख कर कहते हैं,
आप हस्तिनापुर जाकर अर्जुन को यहां की स्थिति के बारे में सूचित करो और कहो कि द्वारका से हमारी सारी स्त्रियों को लेकर हस्तिनापुर जाएं। वहां पर वह सुरक्षित रहेंगी।
श्री कृष्ण की देह त्याग
वह विश्वासपात्र वहां से अर्जुन के पास जा चुका था उनके जाते ही बलराम जी भी अपनी देह त्याग करने के विचार से वहां से चले जाते हैं और उन्होंने भी अपनी देह त्याग कर दी थी ।श्रीकृष्ण भी दुखी हो गए थे। वह यह सब कुछ नहीं सह पा रहे थे। वह एक वृक्ष के नीचे जाकर दुखी मन से बैठ जाते हैं।
तभी एक भील दूर से उनके चरणों को हिरण का मुख समझ कर अपना बाण चला देता है। जो उनके चरणों में जाकर लगता है। जैसे ही वह बाण उनके चरणों में लगा था, श्रीकृष्ण ने भी अपनी देह त्याग कर दी थी। लेकिन इसके पीछे भी एक रहस्य था, कि उस भील ने ही उन्हें तीर क्यों मारा?
यह त्रेता युग की एक कथा है श्रीराम ने छिपकर बाली को बाण मारा था और उसका वध किया था। कहते हैं बाली की पत्नी तारा ने श्रीराम को यह श्राप दिया था कि एक समय ऐसा आएगा जब आपको भी कोई छिपकर ही मारेगा और उससे आपका वध होगा। इसी श्राप को इस समय फलीभूत किया गया था।
सारी स्त्रियां अर्जुन के साथ वापस हस्तिनापुर आ चुकी थी।
सत्य का उद्घाटन
इस प्रकार यदुवंश आगे बढ़ा। दरअसल श्री कृष्ण जी को जो श्राप मिला था वह सिर्फ उनके वंश को मिला था। पूरे यदुवंश को नहीं। इन श्राप की वजह से श्री कृष्ण के वंश के लोग गलत रास्ते पर चल पड़े थे। वह मांस मदिरा का सेवन करते, स्त्रियों का अपमान करते ,ऋषि-मुनियों का उपहास और अपमान करना उन्हें बहुत अच्छा लगता। उनके अंदर यह अहंकार की भावना आ गई कि हम यदुवंशी हैं
यदुवंश का रहस्य - कहां गए यदुवंशी?

