बरगद की दुल्हन का श्राप

राजस्थान के एक छोटे से गांव में, सूरज की गर्माहट धीरे-धीरे घट रही थी। अभिजीत और सुमन, जो हाल ही में शादी के बंधन में बंधे थे, शहर से गांव की तरफ एक जीप में जा रहे थे। वो दोनों जीप से अपनी पुश्तैनी हवेली पहुंचे। हवेली दूर से ही दिख रही थी, लेकिन पास आने पर उसकी जर्जर हालत नजर आने लगी।
- अभिजीत: “तो, यही है हमारी पुश्तैनी हवेली। ये कई पीढ़ियों से हमारी है। बचपन में मैंने यहां खूब मस्ती की है।”
- सुमन (आश्चर्य से): “इतनी बड़ी हवेली! लेकिन यहां तो सन्नाटा पसरा हुआ है। आसपास कोई क्यों नहीं रहता?
अभिजीत (हंसते हुए): “गांव वाले इसे श्रापित कहते हैं। पर तुम तो जानती हो, मुझे इन बातों पर यकीन नहीं।”
गांव के कुछ लोग उनके स्वागत के लिए वहां पहुंचे। एक बुजुर्ग आदमी ने आगे बढ़कर अभिजीत से कहा।
बुजुर्ग: “राम-राम बेटा। हवेली की हालत थोड़ा खराब है इसकी सफाई करनी पड़ेगी और उस बरगद के पास मत जाना।
सुमन (चौंककर): “क्यों? उस बरगद में ऐसा क्या है?”
बुजुर्ग: “वो श्रापित है। वहां आत्मा आज भी भटकती है।”
अभिजीत ने हंसते हुए इस बात को मजाक में टाल दिया, लेकिन सुमन के मन में जिज्ञासा जाग गई।
हवेली में रहते हुए कुछ दिन बीत गए। एक दिन, सुमन हवेली के पीछे के हिस्से में घूमने निकली। वहां उसने विशाल बरगद का पेड़ देखा। उसकी जड़ें जमीन से बाहर निकलकर डरावनी लग रही थीं।
पेड़ के पास जाते ही सुमन ने झाड़ियों के बीच एक पुराना मंदिर देखा। मंदिर धूल और काई से ढका हुआ था।
सुमन (अपने आप से): “यहां कोई पूजा क्यों नहीं करता? ये तो सैकड़ों साल पुराना लगता है। अब मैं यहां रोज पूजा किया करुंगी”
जैसे ही उसने मंदिर में कदम रखा, ठंडी हवा का झोंका आया। अंदर एक छोटी मूर्ति रखी थी, और दीवारों पर लाल निशान बने थे। उसे लगा जैसे कोई उसे देख रहा हो। अचानक उस मंदिर के कोने में किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। डर के मारे वो तुरंत हवेली वापस भागी।
उस रात, सुमन को सपना आया। उसने देखा कि लाल जोड़े में एक दुल्हन बरगद के पास खड़ी है। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
दुल्हन (धीमे स्वर में): “तू मेरी जगह लेने आई है।”
सुमन घबरा कर उठ बैठी। उसने अभिजीत को जगाया।
सुमन: “अभिजीत, मुझे अजीब सपना आया। वो एक दुल्हन मुझे कह रही थी कि मैं उसकी जगह लूंगी।”
अभिजीत (हंसते हुए): “अरे, ये सब तुम्हारे दिमाग का खेल है। गांव वालों की बातों पर ध्यान मत दो।”
लेकिन सुमन के साथ अजीब घटनाएं होने लगीं। कभी उसे अपने कमरे में चूड़ियों के टूटने की आवाज सुनाई देती, तो कभी ऐसा लगता जैसे कोई साया उसके पास से गुजर गया हो। कभी ऐसा लगता जैसे कोई उसे बुला रहा है।
सुमन ने गांव की एक बुजुर्ग महिला, दादीसा, से मिलने का फैसला किया।
सुमन: “दादीसा, उस बरगद की कहानी क्या है? लोग उसे श्रापित क्यों कहते हैं?”
दादीसा (गंभीर स्वर में): सदियों पहले ये हवेली बहुत हरी भरी थी। यहां का जो राजा था वो बहुत अच्छा था और उसके बहुत सारे नौकर चाकर थे और जो ये मंदिर है इस मंदिर में सभी लोग अपनी पूजा पाठ करते थे। रानी भी यहां पर पूजा करती थी।
सुमन : दादी मां फिर ऐसा क्या हुआ है यहां पर?
दादी : अपने अच्छे जीवन की कामना के लिए लड़कियां भी यहां पूजा करने आती थी। राजा के एक नौकर ने षड्यंत्र रचा क्योंकि वो राजा की गद्दी हासिल करना चाहता था। उसने इस चीज के लिए एक तांत्रिक से सलाह ली। तांत्रिक ने उसे बताया कि उसे इसी हवेली में बने मंदिर में बरगद के पेड़ के नीचे एक नई नवेली दुल्हन की बलि देनी होगी। तभी वो राजा की गद्दी हासिल कर सकता है। उस नौकर ने अपना मकसद पूरा करने के लिए वहां पर मंदिर में पूजा करने आई एक लड़की को अपने प्रेमजाल में फसाया और फिर उससे शादी कर ली और फिर उसे इसी महल में लेकर आ गया और जिस रात वो उसे महल में लेकर आया, उसी रात उस नौकर ने और उस तांत्रिक ने मिलकर उस लड़की की बलि यहां बरगद के पेड़ के नीचे चढ़ा दी।”
सुमन : क्या दादी मां बलि?
दादी मां : जब राजा को इसके बारे में पता चला तो राजा ने उस नौकर को मृत्युदंड दे दिया और वो तांत्रिक भाग गया।
सुमन : तो फिर उस नौकर को उसके कीये की सजा तो तभी मिल गई तो फिर ये यहां पर ऐसा क्यों?
दादी : और दुल्हन ने इस बरगद को उस रात श्राप दिया था। अगर आज के बाद कोई भी इस बरगद के पेड़ के पास आएगा या यहां पर पूजा करेगा तो उसे मृत्यु मिलेगी। तभी से ये बरगद का पेड़ शापित है।
सुमन : तो क्या उस लड़की की आत्मा आज भी इसी जगह में है।
दादी : हाँ, लेकिन उस दिन उसके साथ जो भी हुआ उसके बाद से इस हवेली में जो भी कोई नई नवेली दुल्हन आती है या जो भी कोई पति पत्नी रहने आते है वो आत्मा उन्हें परेशान करती है।
सुमन (डरते हुए): “क्या… क्या वो आत्मा मुझे नुकसान पहुंचा सकती है?”
दादीसा: “अगर तुमने उस मंदिर या बरगद के आसपास कुछ छेड़ा है, तो वो तुम्हें अपनी जगह लेने के लिए बुला सकती है।”
उस रात, सुमन को फिर वही सपना आया। इस बार वो और भी डरावना था।
दुल्हन (गुस्से में): “आ जा… मेरा इंतजार पूरा कर।”
सुमन जैसे किसी अज्ञात शक्ति के वश में थी। वह उठकर बरगद की ओर चल पड़ी। अभिजीत ने देखा कि सुमन गायब है, तो वो उसे ढूंढने निकला।
बरगद के पास पहुंचते ही सुमन को लगा कि वो दुल्हन उसके सामने खड़ी है।
दुल्हन की आत्मा: “तू मेरी जगह लेगी। अब तेरी बलि चढ़ेगी। तब मुझे न्याय मिलेगा।”
उसी समय अभिजीत वहां पहुंच गया।
अभिजीत: “सुमन, यहां से हटो!”
आत्मा (गुस्से में): “तू उन लोगों का वंशज है जिन्होंने मुझे मारा। अब तुझे भी मेरी पीड़ा का सामना करना होगा।”
सुमन ने हिम्मत दिखाते हुए आत्मा से कहा,
सुमन: “मुझे माफ करना। मैं तुम्हारी मदद करना चाहती हूं। बताओ, मैं तुम्हें कैसे मुक्ति दूं?”
आत्मा थोड़ी शांत हुई और बोली,
आत्मा: “जब तक मेरी कहानी सबको नहीं पता चलेगी, मुझे शांति नहीं मिलेगी।”
अगले दिन, सुमन और अभिजीत ने गांव के सभी लोगों को इकट्ठा किया। उन्होंने दुल्हन की दर्दनाक कहानी सुनाई। गांव वालों ने उस मंदिर में पूजा करवाई और उस बरगद के पेड़ को कटवा दिया। आत्मा के नाम पर एक स्मारक बनवाया।
आखिरकार, दुल्हन की आत्मा को शांति मिल गई।
सुमन: “यह कहानी हमें सिखाती है कि अन्याय कभी भी छुपा नहीं रह सकता। सचाई को हमेशा बाहर आना ही होता है।”
हवेली और गांव में एक बार फिर शांति लौट आई।